इतना भी मत रुठ मुझसे,
कि तुझे मनाने की उम्मीद ही खत्म हो जाए।
न मंज़िल है, न मंज़िल की है कोई दूर तक उम्मीद,
ये किस रस्ते पे मुझको मेरा रहबर लेके आया है।
उम्मीद का लिबास तार-तार ही सही, पर सी लेना चाहिए,
कौन जाने कब किस्मत माँग ले, इसको सर छुपाने के लिए ।
अभी तक है उसके लौट के आने की उम्मीद,
अभी तक ठहरी है ज़िंदगी अपनी जगह,
लाख ये चाहा कि उसे भूल जाऊं पर,
हौंसले अपनी जगह, बेबसी अपनी जगह।
इस दिल की उम्मीदों का हौसला तो देखो दोस्तो,
इंतज़ार भी उसका है जिसे मेरा एहसास तक नहीं।
वो उम्मीद ना कर मुझसे जिसके मैं काबिल नहीं,
खुशियाँ मेरे नसीब में नहीं और यूँ बस,
दिल रखने के लिए मुस्कुराना भी वाज़िब नहीं।
बहुत चमक है उन आँखों में अब भी,
इंतज़ार नहीं बुझा पाया है उम्मीद की लौ।
हौसले के तरकश में,
कोशिश का वो तीर ज़िंदा रखो,
हार जाओ चाहे जिन्दगी मे सब कुछ,
मगर फिर से जीतने की उम्मीद ज़िंदा रखो।
दूर हो के तुमसे ज़िंदगी सज़ा सी लगती है,
यह साँसे भी जैसे मुझसे नाराज सी लगती हैं,
अगर उम्मीद-ए-वफ़ा करूँ तो किस से करूँ,
मुझ को तो मेरी ज़िंदगी भी बेवफ़ा लगती है।
उम्मीदें तैरती रहती हैं, कश्तियां डूब जाती हैं,
कुछ घर सलामत रहते हैं, आंधिया जब भी आती हैं,
बचा ले जो हर तूफां से, उसे “आस” कहते हैं,
बड़ा मज़बूत है ये धागा, जिसे “विश्वास” कहते है।